उपभोक्ता शिक्षा का क्या अर्थ है? उपभोक्ता शिक्षा के स्त्रोत क्या हैं ?
उपभोक्ता शिक्षा से तात्पर्य है उपभोक्ता अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरुक हो तथा क्रय संबंधी निर्णय उचित रूप से ले सके।
उपभोक्ता निशा का अर्थ- उपभोक्ता का उपभोक्ता नियमों के प्रति जागरुक होना अत्यंत आवश्यक हैं। उपभोक्ताओं के विशेषाधिकारों, उनके संरक्षण के लिये बनाये गये कानूनों तथा बाजार व समाज के प्रति उनके दायित्वों का ज्ञान उसे होना चाहिए ताकि वह निर्माता या विक्रेता द्वारा गुमराह न हो तथा विवेकपूर्वक खरीददारी कर अपने अनमोल साधनों का सदुपयोग कर सके। इस प्रकार की जानकारी को उपभोक्ता शिक्षा कहते हैं।
उपभोक्ता शिक्षा से तात्पर्य है उपभोक्ता अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरुक हो तथा क्रय संबंधी निर्णय उचित रूप से ले सके।
घर-परिवार के लिये अधिकतर सामान गृहिणी के द्वारा ही खरीदा जाता है इसलिये उसका उपभोक्ता के रूप में शिक्षित होना सबसे जरूरी है। इस शिक्षा को प्राप्त करने के लिये किसी औपचारिक शिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। वह इसे अनौपचारिक तरीके से दोस्तों-मित्रों द्वारा, जनसंचार माध्यमों जैसे समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि द्वारा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा प्राप्त कर सकती है। इसके अन्तर्गत उसे उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों तथा करत्वों का तथा क्रय सम्बन्धी निर्णय लेने का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
उपभोक्ता शिक्षा के स्रोत-उपभोक्ता शिक्षा निम्नलिखित के स्रोत निम्न हैं-
1. निजी तथा आस-पास के व्यक्तियों के अनुभव - व्यक्ति अनुभव से बहुत कुछ सीखता हैं। किसी वस्तु के प्रयोग से यदि हम एक बार सन्तुष्ट होते हैं तो उसी को बार-बार प्रयोग करते हैं नहीं तो उसका ब्रांड बदल कर देखते हैं जैसे साबुन ,तेल ,शैम्पू आदि। उसी प्रकार एक दुकान से पदार्थ खरीद कर यदि हमें उचित लगे तभी हम बार –बार वहाँ से खरीदतें हैं वरना नहीं। अपने सम्बन्धी, मित्र, पड़ोसियों आदि से बातचीत कर हम उनके अनुभवों का लाभ भी उठाते हैं।
2. जनसंचार माध्यम (Mass Media)-समाचार-पत्र, विभिन्न पत्रिकायें, जनसंचार माध्यम हैं। इनके द्वारा दी गई सूचनायें जन-जन तक पहुँचती हैं इसलिए यह उपभोक्ता को सूचित करने का महत्वपूर्ण तरीका है। टी.वी. तथा रेडियो तो छपे हुये माध्यमों से भी अधिक प्रभावशाली होतें हैं क्योंकि इनके माध्यम से जानकारी अशिक्षित जनता तक भी पहुँचती है। उत्पादक अपने उत्पादनों की गुणवत्ता, उपयोग ,मोल आदि इन माध्यमों द्वारा जनता को बताते हैं। बहुत-सी वस्तुओं के विभिन्न मण्डियों व बाज़ारों में भाव जैसे सोना, चांदी ,अनाज ,फल सब्जियां आदि समाचार पत्रों में नियमित रूप से छपते हैं तथा रेडियो व टी.वी. पर भी बताये जाते हैं। इससे उपभोक्ता इनकी तुलना कर उचित निर्णय ले सकता हैं। उपभोक्ता को धोखाधड़ी तथा खाद्य मिलावट आदि के बारे में भी जानकारी देने के कार्यक्रम चलाए जातें हैं।
3. उपभोक्ता संरक्षण संगठन (Consumer Protection Organisations)- जगह –जगह पर बहुत –सी उपभोक्ता संरक्षण संस्थायें स्थापित हो गई हैं जो उपभोक्ताओं को धोखेबाज़ निर्माताओं के बारें में सजग करवाती हैं। यह गैर-सरकारी संस्थायें होती हैं तथा विभिन्न नामों से जानी जाती हैं जैसे 'उपभोक्तता मार्गदर्शन संगठन आदि । लेकिन इस प्रकार की संस्थायें अधिकतर शहरों, विशेष रूप से बड़े शहरों में ही कार्यरत हैं। छोटे शहरों तथा गावों में रहने वाले लोगों को इनसे विशेष लाभ नहीं होता। अब इस प्रकार के संगठन सरकार द्वारा भी स्थापित किए गए हैं इन्हे Consumer Protection Cells का नाम दिया गया है। केन्द्र सरकार के आदेशानुसार सभी राज्य सरकारों ने जिला स्तर पर इस प्रकार के केंद्र खोलें हैं, जो उपभोक्ताओं को महत्वपूर्ण सूचनायें देते हैं, उनकी शिकायतें दर्ज करते हैं, उन धोखेबाज़ व्यापारियों पर लगाम कसते हैं।
4. प्रसार संस्वायें (Extension Agencies) -विभिन्न सरकारी प्रसार संसंथाएं जो कि खाद्य ,कृषि तथा समाज –कल्याण विभागों की इकाइयाँ हैं, उपभोक्ताओं को समय-समय पर भोजन व पोषण के प्रति जागरुक करवाती रहती हैं। यह संस्थाएं विशेष रूप से ग्रामीण तथा दूर-दराज के पिछड़े इलाकों में अपनी गतिविधियाँ चलाती है तथा लोगों तक अपना संदेश पहुचानें के लिए बैठकों, लघु नाटिकाओं, इश्तिहारों (Pamphlets) तथा सिनेमा रील आदि का प्रयोग करती हैं।
5. स्वयंसेवी संस्यायें (Voluntary Agencies)- बहुत-सी स्वयंसेवी संस्थाएं दूसरे दायित्व निभाने के साथ –साथ उपभोक्ता अधिकारों व कर्तव्यों की जानकारी लोगों तक पहुँचाने का काम भी करती हैं। उपभोक्ता शिक्षण के अतिरिक्त इनके पास कोई विशेष अधिकार नहीं होते यानी धोखेबाज़ व्यापारियों के विरुद्ध न तो कार्यवाही। फिर भी उपभोक्ता को जागरुक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।