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‘जजों की नियुक्ति प्रणाली फूलप्रूफ’…पूर्व CJI यूयू ललित ने दिया बड़ा बयान

New Delhi: न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों के लिए नामों की सिफारिश करने में एक कठोर प्रक्रिया शामिल है।
 
 
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पूर्व सीजेआई ने कहा कि हमारे पास कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर कोई और प्रणाली नहीं है।
 
New Delhi: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यूयू ललित ने शनिवार को कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली एक आदर्श मॉडल है जो फूलप्रूफ है। वे न्यायिक नियुक्ति और सुधार पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों के लिए नामों की सिफारिश करने में एक कठोर प्रक्रिया शामिल है।

कॉलेजियम को जिंदा रखने का होना चाहिए प्रयास
पूर्व सीजेआई ने कहा कि हमारे पास कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर कोई और प्रणाली नहीं है। यदि हमारे पास कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर कुछ नहीं है तो इसे जीवित रखने के लिए काम करना चाहिए। आज जिस मॉडल पर हम काम करते हैं वह एक आदर्श मॉडल है।

बता दें कि पूर्व सीजेआई यूयू ललित नवंबर 2022 में रिटायर हुए थे। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका संभावित उम्मीदवारों की योग्यता के आधार पर निर्णय लेने की बेहतर स्थिति में है, क्योंकि उन्होंने वर्षों से अपना काम देखा है।

कोई मनमर्जी नहीं कर सकता
उन्होंने कहा कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम तक पहुंचता है, तो पूरी तरह से सही स्थिति होती है, चाहे नाम स्वीकार किया जाए या नहीं स्वीकार किया जाए। ऐसा नहीं है कि यह किसी के द्वारा लिया गया मनमर्जी वाला अभ्यास है। यह एक फुलप्रूफ व्यवस्था है।

सरकार और अदालतों के बीच कॉलेजियम पर खींचतान
बता दें कि कॉलेजियम प्रणाली जहां वर्तमान न्यायाधीश संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। लेकिन यह न्यायपालिका और सरकार के बीच विवाद का एक प्रमुख कारण बन गया है।

कॉलेजियम प्रणाली पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में कहा था कि संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को समाप्त करके सर्वोच्च न्यायालय ने संसदीय संप्रभुता से गंभीर रूप से समझौता किया और लोगों के जनादेश की अवहेलना की है। धनखड़ की टिप्पणी सरकार और न्यायपालिका के बीच लगातार चल रही खींचतान के बीच आई थी।

मंत्री रिजिजू ने की थी कॉलेजियम की आलोचना
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कथित अपारदर्शिता को लेकर अक्सर कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की है और इसे संविधान से अलग कहा है।

शीर्ष अदालत की एक पीठ ने हाल ही में आश्चर्य जताया था कि क्या न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों को सरकार द्वारा रोक दिया जा रहा है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली को बदलने के लिए लाए गए एनजेएसी अधिनियम को रद्द कर दिया था।

 

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